नीम करोली बाबा और उनके आश्रम की अनसुनी कहानी

नीम करोली बाबा कहानी
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नीम करोली बाबा भारत के महान संतो में शुमार होते है। यह वो संत है, जिन्होंने अपना पूरा जीवन साधना और जनकल्याण में व्यतीत किया है। नीम करोली बाबा का जन्म 19वीं शताब्दी के शुरुआत के दौरान हुआ था। उनकी जन्मभूमि अकबरपुर गांव है, जो उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद जिले में आता है। बाबा ने एक ब्राह्मण कुल में जन्म लिया था और उनका असली नाम “लक्ष्मी नारायण शर्मा” था। उन्होंने कम उम्र ही ज्ञान प्राप्त कर लिया था। उनका विवाह 11 साल की आयु में कर दिया था। किन्तु वह ज्यादा समय तक खुद को अध्यात्म की दुनिया से पृथक ना कर सके और वो अपना घर छोड़ अध्यात्म की खोज में गुजरात की और निकल पड़े। काफी समय गुजरात में बिताने पर अपने पूज्य पिता के कहने पर वापस अपने गांव आ गए।  इसी दौरान उन्हें 3 संतान का सुख प्राप्त हुआ। जिसमे उन्हे 2 पुत्र और 1 पुत्री थी। वो अपना गृहस्थ जीवन जी तो रहे थे लेकिन उनका सम्पूर्ण चित्त अध्यात्म में लगा हुआ था। कुछ समय पश्चात वो फिर से अपना घर त्याग कर अध्यात्म की खोज में लग गए। ये वही समय था जब उनके संपर्क में आने वाले कई लोग उनके अनुयाई बने। कई भक्तो को उनके द्वारा रचे हुए चमत्कारों से साक्षात्कार हुआ।

नीम करोली नाम कैसे पड़ा

एक बार बाबा फर्स्ट क्लास कम्पार्टमेंट में सफर कर रहे थे, जब टिकट चेक करने चेकर आया, तो उनके पास टिकट नहीं थी। तब उन्हें अगले स्टेशन नीम करोली ट्रेन से उतार दिया गया था। बाबा ने थोड़ी दूर पर अपना चिपटा धरती में गाड़कर बैठ गए। गार्ड ने हरी झंडी दिखाई, लेकिन ट्रेन भी एक इंच आगे नहीं हिली। बाद में बाब से माफ़ी मांगने से बाद, उन्हें सम्मान के साथ ट्रेन में बैठाया गया और उनके बैठने के बाद ट्रेन चलने लगी। तब से बाबा का नाम नीम करोली पड़ गया।

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नीम करोली बाबा हनुमान जी के भक्त थे

बाबा नीम करोली को भक्त और उनके अनुयायी हनुमान जी का अवतार मानते थे, लेकिन बाबा नीम खुद हनुमान जी पूजा करते थे। उन्होंने हनुमान जी के कई मंदिर भी बनवाएं। जब कोई भक्त नीम करोली बाबा के पैर छूता तो बाबा पैर छूने से मना कर देते और कहते पैर छूना ही है तो हनुमान जी के छुओ। आज भी लोग उन्हें भक्त श्रद्धापूर्वक उन्हें मानते हैं।

बाबा नीम करोली के आश्रम की कहानी

उत्तराखंड की पावन भूमि पर स्थित कैंची धाम का पवित्र मंदिर है। जहां करोली बाबा अपनी कृपा भक्तो पर बरसाते है। जो भक्त इस आश्रम में दर्शन करने आता है। वह कभी खाली हाथ नहीं जाता है। यहां पर भक्त बाबा को हनुमान जी का स्वरुप मानते है और पूजा करते है। यहाँ पर बाबा ने अपने हाथों से हनुमान जी की प्रतिमा स्थापित की थी और हनुमान जी भव्य मंदिर है। साथ ही बाबा की प्रतिमा स्थापित की गई है। यहाँ पर देश-विदेश से बाबा के दर्शन करने लोग आते है। बाबा की ख्याति भारतवर्ष में नहीं, बल्कि विदेशों में भी है। जब बाबा पहली बार कैंची धाम आए थे, तब यह स्थान उनके लिए बहोत करीब था। नीम करोली बाबा के स्वर्गस्थ होने के पश्चात उनके भक्तो ने भगवान हनुमान जी के साथ बाबा की भी एक भव्य मूर्ति स्थापित की है। बाबा के भारतवर्ष और पुरे विश्वभर में 108 आश्रम स्थापित है। इन सभी आश्रमो में भारत में “कैची धाम” और अमेरिका के न्यू मैक्सीको सिटी में स्थित “टाउस आश्रम” मुख्य है।

बाबा के आश्रम की स्थापना कब की

बाबा के आश्रम की स्थापना 15 जून 1964 में की गई थी। तब से हर साल इस दिन को आश्रम के स्थापना दिन के रूप में मनाया जाता है और हज़ारो भक्त देश विदेश से बाबा के दर्शन करने हेतु यहाँ आया करते है। नीम करोली बाबा पहेली बार अपने मित्र पूर्णानन्द के साथ इस भूमि पर आये हुए थे। बाबा का आश्रम कैची धाम  ज़िलों के शहर नैनीताल जिले में भवाली-अल्मोड़ा/रानीखेत नेशनल हाइवे के मार्ग पर स्थित है। नीम करोली बाबा का कैची धाम आश्रम नैनीताल से 22किमी और भावली से 8 किमी पर रानीखेत मार्ग पर स्थित है। यहाँ बाबा का भव्य मंदिर स्थापित किया गया है जो विश्वभर में स्थित उनके अनुयाईओ की आस्था का प्रतिक है। नीम करोली बाबा जो की इस आश्रम के स्थापक है। इस धाम को कैंची धाम, निब करोली, या नीम करोली के नाम से भी जाना जाता है। जब से बाबा द्वारा इस आश्रम की स्थापना की गई है तब से लेकर अब तक यहाँ बाबा के भक्तो का भारी मात्रा में आना रहता है।

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कैंची धाम कैसे पहुंचे

  • हवाईमार्ग से– हवाईमार्ग से आश्रम को पहुँचने के लिए यात्रालू को पंतनगर हवाई अड्डे पर उतरना होगा। पंतनगर हवाईअड्डे से कैची धाम 79 किमी की दुरी पर स्थित है। यात्रालू यहाँ उतर कर कैब के द्वारा मंदिर तक पहुँच सकते है।
  • रेलमार्ग से– रेलमार्ग से आश्रम पहुँचने के लिए यात्रालू को काठगोदाम रेलवे स्टेशन उतरना होगा। यहाँ से आश्रम की दुरी 43 किमी है।
  • सड़क मार्ग से-सड़कमार्ग से आश्रम पहुँचने के लिए यात्रालू को नैनीताल हो कर जाना होगा। यहाँ से आश्रम की दुरी 22 किमी और भवाली से 9 किमी है।

नीम करोली बाबा की पूजा कैसे करें

नीम करौली बाबा तक अपनी अर्जी पहुंचाने के लिए सबसे पहले घर में उनकी मूर्तियां या तस्वीर स्थापित करें। इसके बाद मूर्ति के आगे बैठकर सच्चे मन से नीम करौली बाबा का ध्यान करें। उनके सामने अपनी इच्छा प्रकट करें। इसके साथ ही आप नीम करौली बाबा के मंत्रों और चालीसा का भी पाठ कर सकते हैं।

नीम करोली बाबा की मृत्यु

जब वह नैनीताल जा रहे थे, तभी रास्ते में उनकी तबियत खराब हो गई। जिसके कारण उन्हें वृंदावन स्टेशन पर उतरना पड़ा। बाबा को आनन-फानन अस्पताल में भर्ती कराया गया। बाबा ने तुलसी और गंगाजल ग्रहण कर 11 सितंबर 1973 को अपने प्राण त्याग दिए। वृंदावन में नीम करोली बाबा की समाधि का मंदिर है।

नीम करोली बाबा से संबंधित पूछे गए प्रश्न

नीम करोली बाबा में ऐसा क्या खास था?

 नीम करोली बाबा के पास दैवीय शक्तियां थीं। कई प्रसिद्ध हस्तियां उनकी अनुयायी हैं। धार्मिक मान्यता है कि नीम करौली बाबा के दर जो भी आता है वो कभी खाली हाथ नहीं जाता है। इनके आशीर्वाद से कई लोगों का जीवन संवर गया है।

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नीम करोली बाबा के चमत्कार क्या हैं?

नीम करोली बाबा कहते हैं कि जो इंसान अपने धन का कुछ हिस्सा जरूरतमंदों को बांटता है वह हमेशा खुशहाल रहता है। नीम करोली बाबा के मुताबिक, ऐसा करने से आर्थिक वृद्धि तो होती ही है और व्यक्ति को पुण्य की प्राप्ति होती है।

नीम करोली बाबा ने हनुमान चालीसा के बारे में क्या कहा था?

बाबा जी ने बताया कि हनुमान चासीला की प्रत्येक पंक्ति अपने आप एक महामंत्र है। इसलिए जो व्यक्ति हनुमान चालीसा का पाठ करता है, वह व्यक्ति सभी कष्टों से मुक्त हो जाता है और सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। साथ ही जिस लक्ष्य को आप पाना चाहते हैं, उसमें आ रही बाधाएं खत्म होती हैं।

स्टीव जॉब्स नीम करोली बाबा के पास क्यों गए थे?

1974 में भारत की अपनी यात्रा के दौरान स्टीव जॉब्स को नीम करोली बाबा की शिक्षाओं से सुकून मिला । उस समय जॉब्स को अपने काम में परेशानी हो रही थी। इस वजह से उन्होंने एप्पल की सह-स्थापना करने की इच्छा जताई, जिसने उनके जीवन की दिशा बदल दी।

नीम करोली बाबा का मंत्र क्या है?

मैं हूं बुद्धि मलीन अति श्रद्धा भक्ति विहीन। करू विनय कछु आपकी, होउ सब ही विधि दिन। कृपा सिंधु गुरूदेव प्रभु। करि लीजे स्वीकार।

कैंची धाम इतना लोकप्रिय क्यों है?

इस आध्यात्मिक निवास का महत्व न केवल इसके सुरम्य परिवेश में है, बल्कि यह साधकों को प्रदान किए जाने वाले गहन आध्यात्मिक अनुभव में भी निहित है।

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